रात के इस पल में
एक ठहरे हुए कल में
मैं प्रवेश करता हूँ
यह तिमिर की बेला
स्याह आस्मां
नीचे लाल धरा
मैं प्रवेश करता हूँ
मंजिल है दूर
रास्ता एक घना जंगल
हवाओं से खड़कते पत्ते
एकांतिक अनुभूतियों के साथ
मैं प्रवेश करता हूँ
मन में लेकर
ना कोई अवसाद
बस ठहरा है
एक ख़ास अहसास
ए साथी
तेरे मन में
मैं प्रवेश करता हूँ।
एक ठहरे हुए कल में
मैं प्रवेश करता हूँ
यह तिमिर की बेला
स्याह आस्मां
नीचे लाल धरा
मैं प्रवेश करता हूँ
मंजिल है दूर
रास्ता एक घना जंगल
हवाओं से खड़कते पत्ते
एकांतिक अनुभूतियों के साथ
मैं प्रवेश करता हूँ
मन में लेकर
ना कोई अवसाद
बस ठहरा है
एक ख़ास अहसास
ए साथी
तेरे मन में
मैं प्रवेश करता हूँ।