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Thursday, January 29, 2015

परेड

हर वायदे पर तेरे ऐतबार कैसे करे कोई
कभी खुद से भी प्यार करे कोई।

देखता बरसों से चली आ रही नुमाइशें वह
ख्वाबों से इतना प्यार कैसे करे कोई।

एक साथ दिखाते बच्चे और बंदूकें
कोई कलम पकडे या हथियार पकडे कोई।

मौकों की तलाश में दिखती युवकों की फ़ौज
जब रास्ता ही सुनसान ना हो तो राहजनी कैसे करे कोइ।

तमन्नाओं के दलदल में पैरों को जमीन नहीं मिलती
इन्तेजार में डूबे जाते हैं की रस्सी फेंके कोई।

हर काफ़िर बतलाने लगा है खुदा का पता
नमाजियों पर अब भरोसा कैसे करे कोई।

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