तेरी जुल्फों को छू कर जब बयार चली
मेरा दिल लेकर मेरे यार चली।
हम आईने से पूछते अपना ही पता
परछाइयाँ भी मेरी अब तेरे साथ चलीं।
शौक तो बहुत है दिल को मुहब्बत का मगर
किस दामन से उलझ कर जिंदगी की राह चली।
थम कर वक्त जरा बदल क्यों नहीं जाता?
हर बार इसने बस अपनी ही चाल चली।
मेरा दिल लेकर मेरे यार चली।
हम आईने से पूछते अपना ही पता
परछाइयाँ भी मेरी अब तेरे साथ चलीं।
शौक तो बहुत है दिल को मुहब्बत का मगर
किस दामन से उलझ कर जिंदगी की राह चली।
थम कर वक्त जरा बदल क्यों नहीं जाता?
हर बार इसने बस अपनी ही चाल चली।
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