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Friday, January 9, 2015

थपेड़े

फ़साने कई लिखे हैं लहरों ने थपेड़ों से 
मिटा मिटा कर साहिलों की रेत थपेड़ों से।

वो जरूर दरियाओं में पनाह मांगते होंगे 
वरना कब बचे हैं सितमगर थपेड़ों से। 

वो कहते मेरी खुशमिजाजी को मेरा बचपना मगर 
उन्हें नहीं पता हम बच ना पाये उम्र के थपेड़ों से।  

वो तो उनकी आशिकी को बेदाग़ रखना था वरना 
कमजोर  हम इतने भी नहीं की लहरें मिटा दे नाम थपेड़ों से।  

रहम मांगते फिरें शख्स वे सीपियों की दुकानों पर 
लहरों ने आ पटका है जिन्हें किनारों पर थपेड़ों से। 

आसान कहाँ है शायरी में मुकाम पाना 
शायरी की जमीन पर मिट जाते कई नाम जिंदगी के थपेड़ों से।