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Tuesday, September 15, 2015

मैं प्रवेश करता हूँ

रात के इस  पल में
एक ठहरे हुए कल में
मैं प्रवेश करता हूँ

यह तिमिर की  बेला
स्याह आस्मां
नीचे लाल धरा
मैं प्रवेश करता हूँ

मंजिल है दूर
रास्ता एक घना जंगल
हवाओं से खड़कते पत्ते
एकांतिक अनुभूतियों के साथ
मैं प्रवेश करता हूँ

मन में लेकर
ना कोई अवसाद
बस ठहरा है
एक ख़ास अहसास
ए साथी
तेरे मन में
मैं प्रवेश करता हूँ। 

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