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Thursday, September 3, 2015

किस्सागो

इस शहर की मस्जिदों में क्यों मीनारें नहीं दिखती
 घर में कैद है वह तो क्यों दीवारें नहीं दिखतीं।

रास्तमिजाज है  या मेरा वहम है          (रास्तमिजाज =सच्चाई पसंद)
की नारों में उसके वह आशनाई नहीं दिखती।

तमाम उम्र साँसों में कैद रूह  छटपटाती है
आजाद ख़याल दिखते आजाद रूह नहीं दिखती। 

वक्त पर बिछ गयी है कैसी धूल कोई तो साफ़ करे
पीछे चाबी लगा कोई तो शुरुआत करे
उँगलियाँ उठने लगी हैं अब तो
ठहरा नहीं अगर तो क़दमों के निशाँ क्यों नहीं दिखते। 

किस्सागो से दिल्लगी की आदत भली नहीं     (किस्सागो= किस्सा कहने वाला)
की किस्सों से जिंदगी की राह नहीं निकलती। 

अंधेरों में आवाज लगाएं भी तो क्यूँकर
 कभी चिराग नहीं दिखता कभी जमीं नहीं दिखती।

  

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