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Sunday, January 25, 2015

पड़ाव

मन के सवालों का जवाब कहाँ मिलता
की मंजिलों से पहले पड़ाव कहाँ मिलता।

हर पेड़ छिप गया है मकानों की चादरों में
परिंदों को अब शहरों में पड़ाव कहाँ मिलता।

वो कैदी जंगले से झांकता तो जरूर है मगर
सपने और हक़ीकत के परों का विसाल कहाँ मिलता।

बड़ा पाकदामन बतलाते हैं जमाने में उसे
दामन में उसके जले ठूंठों के सिवा कुछ नहीं मिलता।

ठहरकर सोचने की आदत भी भली होती वरना
तेज भागती जिंदगी में ठहराव कहाँ मिलता।

हम आज भी तकते उस हमनशीं का रास्ता
खुदा की नमाज में अब वह सुकून कहाँ मिलता। 

1 comment:

Nishant said...

Bhai

khud ko wo panchi mehsoos karta hoon jiske liye shehar me koi ped nahi :)

Awesome hai bhai :)