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Tuesday, November 18, 2014

धीरे धीरे

कब रुकी है जिंदगी की कहानी धीरे धीरे
बीत गयी कुछ बीतेगी बाकि जिंदगानी धीरे धीरे

काफिले कब तक चलेंगे ऊँटों के टखनों पर
वक्त आ गया है हौसलों के पंख लगाना धीरे धीरे

खौफ हवाओं में आज भी मौजूद है अंग्रेज बहादुर का
अरे इस बार तो आजादी लाना धीरे धीरे

कई रातों की नींद बाकि है आँखों में
शायद इस बार जुड़ जाये यह तंत्र जन से धीरे धीरे

हाथ उठा है दुआ में कबूल कर ऐ खुदा
वरना कोई यह न कहे तुझे हम भूल चुके धीरे धीरे

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