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Thursday, October 20, 2016

कागजों के बीच उलझी रही है जिंदगी
सामने देख अब कहाँ बची है जिंदगी

काले शब्द सफ़ेद कागज
रंगों में अब कहाँ खेल रही है जिंदगी

याद अति हैं किस्सागोई की रातें
किस्सा सी अब बन गयी है जिंदगी

आने वाले कल के फिक्र में बीते हुए कल के जिक्र में
खिड़की के जन्गलों से झाँक रही है जिंदगी


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