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Tuesday, November 18, 2014

धीरे धीरे

कब रुकी है जिंदगी की कहानी धीरे धीरे
बीत गयी कुछ बीतेगी बाकि जिंदगानी धीरे धीरे

काफिले कब तक चलेंगे ऊँटों के टखनों पर
वक्त आ गया है हौसलों के पंख लगाना धीरे धीरे

खौफ हवाओं में आज भी मौजूद है अंग्रेज बहादुर का
अरे इस बार तो आजादी लाना धीरे धीरे

कई रातों की नींद बाकि है आँखों में
शायद इस बार जुड़ जाये यह तंत्र जन से धीरे धीरे

हाथ उठा है दुआ में कबूल कर ऐ खुदा
वरना कोई यह न कहे तुझे हम भूल चुके धीरे धीरे

Saturday, November 1, 2014

मकां

इस तंग मकां में तेरा रहना हाय हाय
इससे बड़ा तो मेरा दिल हाय हाय

आशिकों की बस्ती में खुदा का भी एक मकां है मगर
दरवाजे पर चुनवाई किसने यह दीवार हाय हाय

पुराने दरख़्त हैं छाया तो देंगे मगर
किसे पता कब टूट कर बिखर जाये हाय हाय

मेरे चाहने वालों ने आवाजें कितनी लगायी मगर
हम जहाँ रहते हैं वहाँ उठी ख़ामोशी की बयार हाय हाय

आज खुश हुआ हूँ तो लिखता हूँ गजल  मगर
कलम से मेरी क्यूँ टपके है लहू हाय हाय

इधर मस्जिद टूटी उधर मैकदा फूटा
खुदा के दोनों ठिकाने इंसानों ने कैसा लूटा

शबे हिज्र में भी होता रहा बहरे खुदा फ़रियाद
हमसे यारों खुदा को किसने लूटा

था आगाज ऐसा की जीस्त ने खुदा पाया
अंजाम देख कर हाथों से पैमाना छूटा

हम आज भी करते हैं खुदा तुझे दिल से याद
पर इस चक्कर में हमसे जमाना रूठा

रफ्ता रफ्ता जमाने से ग़मगुसार घटते गये
इंकलाबियों के सैलाब थे बिन बारिश छंटते गये

मजलिस लगी है भीड़ भी बहुत है
वो इमारते नहीं गरीबों के झोपड़े हैं
हवा बहती गयी वे जलते गये

शमा हर रंग में जली है सहर होने तक ग़ालिब
पर कारवां थमता गया लोग घटते गये

कितना जोर आजमां रही हवाएं देखो
चिराग तो बुझा नहीं परवाने उड़ते गये

हम वह गुल नहीं जो बादे-नौ बहार का इन्तेजार करें
की मौसम बीतते गए हम खिलते गये

Monday, October 20, 2014

बरसों बाद उनका महफ़िल में उनका नाम आया
पतझड़ के पेड़ों में हरेपन का निशाँ आया

जब उड़ेलुं तेरे पैमाने से गले में शराब साकी
बने है दिल में ग़ज़ल होठों पर तेरा नाम आया

मैकशी में अब वह मजा कहाँ रहा
की जिसने आंखों से पी उसे मयखाना कहा काम आया

हम सबा से पूछते हैं  नामबर का पता
मेह्नत ये मेरी बस पत्ते खड़काने के काम आया

Thursday, October 16, 2014

जिंदगी का फ़साना है किसने किसको जाना है
हम ने तो अब तलक कहां खुद को पहचाना है

है सांस लेती जिंदगी आगोश में मेरी
मगर सुनता हूँ मौत का अलग पैमाना है

सियासत के रखवालों से कोई कैसे बचाये जम्हूरियत को
थपेड़ों में फसी कश्ती का कहा कोई ठिकाना है

रात की हथेली पर रखे अंगारों को ताकते रह गए
और कुछ नहीं बस उनकी सोहबत  नजराना है

Wednesday, October 15, 2014

जरुरत है

पुराने टूटे चश्मे से
झांकती दो पुरानी ऑंखें
मेज के उस पार वह बैठा
मेरी बातों को था गौर से सुन रहा
डर लगा मुझे जैसे
अपने अनुभव के तराजू से
मुझे था तौल रहा

कितनी अच्छी बातें की मैंने
गावों का समुचित विकास
रोजगार होगा लोगों के पास
प्रधानमन्त्री की जनधन
अब नहीं रह जायेगा कोई निर्धन

हर बात सुन
उसकी आँखों की चमक बढ़ती गयी
और पेशानी पर पड़ी लकीरें
धीरे धीरे घटती गयीं

आश्चर्य!

बीते सालों में उसने कितनों को सुना होगा
नयी बातें नए आश्वासन
कितनी ही बार भुना होगा
फिर भी आँखों की चमक बाकी है
कुछ  करने की ललक बाक़ी है
मेरे निराशावादी होने पर भी
वह कितनी आशाओं से भरा है
अपनी नहीं पर भावी पीढ़ी के
सुखद जीवन के अहसास से दबा है

इतने वर्षों के सरकारी थपेड़ों से
वह नहीं है टूटा
इस तंत्र से वह नहीं है रूठा

तो शायद मुझे
खुद बदलने की जरुरत है
और शायद उसने ही दिया
इसका मुहूर्त है।

कुछ बात बने

चले आओ की फिर कुछ बात बने
आँखों में रात बने दिल से दिल का साथ बने

विकास की लम्बी चादर लिए मैं खड़ा हूँ
अपने को करीब तो लाओ की कुछ बात बने

मेरी सच्चाई को समझने की कोशिश छोड़
खुद को समझ जाओ तो कोई बात बने

सडसठ सालों से रेंगते हुए मेरे पास न पहुंचे
जो कछुए की केंचुल उतारो तो कुछ बात बने

जितनी दूर रहोगे उतने खतरे में पाओगे खुद को
कहीं जनता का गुस्सा
कहीं नक्सलवादी
आतंकवादी या उग्रवादी
जो चादर में आ जाओ तो कुछ बात बने

हैं लोग सोये हो तुम भी सोये
अब भी जाग जाओ तो कुछ बात बने

मैं रूह तुम जिस्म मैं हकीकत तुम तिलस्म
जो मुझ में समां जाओ तो कुछ बात बने 

Monday, May 26, 2014

दूर तलक जाएगी

मेरी उसकी बात है दूर तलक जाएगी
कभी इस फलक जाएगी कभी उस फलक जाएगी।

इस शराब की बेवफाई का  क्या कहना
कभी इस हलक जाएगी कभी उस हलक जाएगी।

रात की बात अब मत कर मेरे दोस्त
कभी इस पलक जाएगी कभी उस पलक जाएगी।

ये समझ ले मेरे दोस्त की यह मुसीबत की घडी
कभी मुझे झलक दिखलाएगी कभी तुम्हे झलक दिखलाएगी।

तेरे जाने के बाद न बदलेगा कुछ खास बस
रात अकेली आएगी रात अकेली जाएगी।

प्यार की इस खुशबु को मत छोड़ना खुला
कभी तेरी सांस महक जाएगी कभी मेरी सांस महक जाएगी।

Tuesday, May 13, 2014

कुछ पंक्तियाँ

जीवन के कुछ बसंतो का यह खयाल है
मेरी जिंदगी कि चाल कुछ तो बेमिसाल है।

धर्म जाति के टुकड़ो पे बंटा
जाने किस किस छुरी पर मेरी गर्दन हलाल है।

मेरा इश्वर, तुम्हारा अल्लाह उसका क्रिस्तान
एक हैं रूप पर कितने बवाल हैँ ।
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जिक्र है मेर आज उसकी महफ़िल में
है नहीं कोइ होश मे उसकी महफ़िल में।

लिख रख है रक़ीबो मे उसने नाम मेरा
वर्ना क्यूँ उछला नाम उसकि महफ़िल में।
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जान की आशनाई साँसों की बेवफाई
हर पल क्यों न उगले मेरी कलम रौशनाई।
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 जिक्र हुआ फिर उनका जमाने के बाद
पिटारा खुला मेरा कुछ यूँ जमाने के बाद।

ऑंखें नम होठों पर एक नाम
गम मेरा कम न हुआ जमाने के बाद।
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Thursday, January 2, 2014

खूबसूरती

 सोचा था 
पहली  के बाद 
लिखूंगा एक कविता 
पर मैंने पाया तुम्हे शब्दों के परे 
शब्द तो सीमित हैं, तुम अनंत 
तुम्हे लिख दंगा तो एक अपमान होगा 
तुम्हारी खूबसूरती का बस एक नाम होगा 

उसे मैं एक नाम कैसे दूं 
वह तो कई रूप में 
बहती मेरी आँखों के  सामने 
कभी हंसती हुई 
कभी शर्म से भरी 
कभी आलस्य में लिपटी 
कहीं गुस्से से जली 

पर हर रूप में 
वह मेरी आत्मा तक पहुँचती है 
तम्हे अपना साथी बनाने पर 
मजबूर करती है