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Monday, December 13, 2010

खोज

रे मन
क्यों सपनों का ताना बना?
राहों से बस पार आना
क्यों सोचता दिन रैन
आँखों में भर के आंसू
ह्रदय की कम्पन टटोलता
तेरा ह्रदय अब तेरे अन्दर कहा
तुने ही तो बहा दिया था
बंद कर एक डिबिया में
एक नदी के संग
अब क्यों सपनों का ताना बना?


रे मन
अब सपनों का पीछा
कब तक करेगा?
पुरानों के पीछे
नए को भूलेगा
आगे पड़ी है दुनिया
हाथ फैलाये
गले लगाने को आतुर
अब सपनों का पीछा
कब तक करेगा


रे मन
 शायद तू नहीं सुधरेगा
और पुराने में ही
नए को ढूंढेगा
शायद यही तेरी तकदीर है
और यही शुरू होती
जिंदगी की तफ्शीश है
रे मन
तू पुराने में ही
नए को ढूंढेगा