उस चेहरे को
कैसे मैं कैद कर लूँ
न कलम उसे बयां कर सकती
न स्याही की धूप उसपर ठहरती
कागज की छाया भी
मुझसे यूँ आंख-मिचौली खेलती
अक्षरों के साये गुजर जाते हैं
मेरी गली खामोश-सी रह जाती है
कैसे मैं कैद कर लूँ
न कलम उसे बयां कर सकती
न स्याही की धूप उसपर ठहरती
कागज की छाया भी
मुझसे यूँ आंख-मिचौली खेलती
अक्षरों के साये गुजर जाते हैं
मेरी गली खामोश-सी रह जाती है
1 comment:
bahut khuub likha hai
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