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Thursday, October 2, 2008

अक्सर रातों में नींद नही आती है
देखता हूँ जिंदगी सामने से गुजर जाती है

अनगिनत परदों के पीछे बैठा हुआ है सच
मंच पर झूठी उम्मीदें खिलखिलाती हैं

मुख्या रास्ते अब होने लगे हैं संकरे
तंग गलियां जीत के नगमे गातीं हैं

बड़े अरमानों के बीच पैदा हुआ था मैं
काली घटायें पल-पल और गहराती हैं

समय ने बढ़ा दी है अपनी रफ़्तार
वक्त से पहले अब शामें ढल आती हैं

मौसम पे लगी बंदिशों का असर है
हवाएं आजकल उधर ही थम जातीं हैं

दरिया का पानी पकड़ने की कोशिश में
हथेलियाँ सिर्फ़ भींग कर रह जाती हैं

जीवन के संगीत को खोजने जो गया
वीणा के कुछ तारें टूटी नजर आती हैं



3 comments:

श्यामल सुमन said...

समय ने बढ़ा दी है अपनी रफ़्तार
वक्त से पहले अब शामें ढल आती हैं

उक्त पंक्तियों में उपस्थित भाव पसन्द आया।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com

प्रदीप मानोरिया said...

सुंदर रचना मज़ा आ गया
बधाई स्वीकारें /समय निकाल कर मेरे ब्लॉग पर भी पधारें

شہروز said...

आपके रचनात्मक ऊर्जा के हम क़ायल हुए.
समाज और देश के नव-निर्माण में हम सब का एकाधंश भी शामिल हो जाए.
यही कामना है.
कभी फुर्सत मिले तो मेरे भी दिन-रात देख लें.

http://shahroz-ka-rachna-sansaar.blogspot.com/