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Monday, October 20, 2014

बरसों बाद उनका महफ़िल में उनका नाम आया
पतझड़ के पेड़ों में हरेपन का निशाँ आया

जब उड़ेलुं तेरे पैमाने से गले में शराब साकी
बने है दिल में ग़ज़ल होठों पर तेरा नाम आया

मैकशी में अब वह मजा कहाँ रहा
की जिसने आंखों से पी उसे मयखाना कहा काम आया

हम सबा से पूछते हैं  नामबर का पता
मेह्नत ये मेरी बस पत्ते खड़काने के काम आया

Thursday, October 16, 2014

जिंदगी का फ़साना है किसने किसको जाना है
हम ने तो अब तलक कहां खुद को पहचाना है

है सांस लेती जिंदगी आगोश में मेरी
मगर सुनता हूँ मौत का अलग पैमाना है

सियासत के रखवालों से कोई कैसे बचाये जम्हूरियत को
थपेड़ों में फसी कश्ती का कहा कोई ठिकाना है

रात की हथेली पर रखे अंगारों को ताकते रह गए
और कुछ नहीं बस उनकी सोहबत  नजराना है

Wednesday, October 15, 2014

जरुरत है

पुराने टूटे चश्मे से
झांकती दो पुरानी ऑंखें
मेज के उस पार वह बैठा
मेरी बातों को था गौर से सुन रहा
डर लगा मुझे जैसे
अपने अनुभव के तराजू से
मुझे था तौल रहा

कितनी अच्छी बातें की मैंने
गावों का समुचित विकास
रोजगार होगा लोगों के पास
प्रधानमन्त्री की जनधन
अब नहीं रह जायेगा कोई निर्धन

हर बात सुन
उसकी आँखों की चमक बढ़ती गयी
और पेशानी पर पड़ी लकीरें
धीरे धीरे घटती गयीं

आश्चर्य!

बीते सालों में उसने कितनों को सुना होगा
नयी बातें नए आश्वासन
कितनी ही बार भुना होगा
फिर भी आँखों की चमक बाकी है
कुछ  करने की ललक बाक़ी है
मेरे निराशावादी होने पर भी
वह कितनी आशाओं से भरा है
अपनी नहीं पर भावी पीढ़ी के
सुखद जीवन के अहसास से दबा है

इतने वर्षों के सरकारी थपेड़ों से
वह नहीं है टूटा
इस तंत्र से वह नहीं है रूठा

तो शायद मुझे
खुद बदलने की जरुरत है
और शायद उसने ही दिया
इसका मुहूर्त है।

कुछ बात बने

चले आओ की फिर कुछ बात बने
आँखों में रात बने दिल से दिल का साथ बने

विकास की लम्बी चादर लिए मैं खड़ा हूँ
अपने को करीब तो लाओ की कुछ बात बने

मेरी सच्चाई को समझने की कोशिश छोड़
खुद को समझ जाओ तो कोई बात बने

सडसठ सालों से रेंगते हुए मेरे पास न पहुंचे
जो कछुए की केंचुल उतारो तो कुछ बात बने

जितनी दूर रहोगे उतने खतरे में पाओगे खुद को
कहीं जनता का गुस्सा
कहीं नक्सलवादी
आतंकवादी या उग्रवादी
जो चादर में आ जाओ तो कुछ बात बने

हैं लोग सोये हो तुम भी सोये
अब भी जाग जाओ तो कुछ बात बने

मैं रूह तुम जिस्म मैं हकीकत तुम तिलस्म
जो मुझ में समां जाओ तो कुछ बात बने