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Thursday, January 2, 2014

खूबसूरती

 सोचा था 
पहली  के बाद 
लिखूंगा एक कविता 
पर मैंने पाया तुम्हे शब्दों के परे 
शब्द तो सीमित हैं, तुम अनंत 
तुम्हे लिख दंगा तो एक अपमान होगा 
तुम्हारी खूबसूरती का बस एक नाम होगा 

उसे मैं एक नाम कैसे दूं 
वह तो कई रूप में 
बहती मेरी आँखों के  सामने 
कभी हंसती हुई 
कभी शर्म से भरी 
कभी आलस्य में लिपटी 
कहीं गुस्से से जली 

पर हर रूप में 
वह मेरी आत्मा तक पहुँचती है 
तम्हे अपना साथी बनाने पर 
मजबूर करती है