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Sunday, January 1, 2012

रुकी पड़ी जिंदगी की अभिलाषा क्या है
समझ नहीं आता इसकी भाषा क्या है

स्याह ठंडी रातें हैं
रुका हुआ समय 
रुकी हुई बातें हैं 
क़दमों को क्यूँ इसके
जकड़े हुए तांतें हैं

घने कोहरे में सूरज की आशा क्या है
समझ नहीं आता उगने की परिभाषा क्या है

हवाओं के दस्तक से
कपाट बस हिल कर रह जाता है
अन्दर कैद जिंदगी की
गर्म साँसे ले जाता है
एक छोटे कमरे में
दबी कई आवाजें हैं
और बाहर पसरा सन्नाटा 
खुश हो कर जश्न मनाता है