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Thursday, September 9, 2010

कुछ अधूरी पंक्तियाँ


खुदा से अभी वास्ता न हुआ
मैं काफ़िर, खुदाई का हिस्सा न हुआ।

रंजिश ने तेरी कर दिया ये हाल
मैं बुरा ना हुआ तू अच्छा ना हुआ।

जुदा होके तुमसे मिजाज कुछ अच्छा न हुआ
रोये तुम भी, आंसू मगर सच्चा ना हुआ।


रुदाली की राह तकते हैं
अश्क थोडा कम रखते हैं।

पैसों की अहमियत खूब समझ आती है मगर
रिश्तों में अक्ल थोड़ी कम रखते हैं।

3. 
ना चारागर की आवाज, न साकी का साज 
जमीं में भी न गदा, थे नौहागर एक राज।

Thursday, September 2, 2010

जब कभी वो जंजीर की एक कड़ी तोड़ता है
जिंदगी और भी मुश्किल में जिया करता है

कदम उठते हैं इसलिए की उजाला पसरेगा
सुबह में शाम की कमीज सीया करता है